कोई व्यक्ति जब पहली बार सड़क पर वाहन चलाता है तो उसे सड़क संबंधी अनेक बातों को ध्यान में रखना चाहिये । ड्राइविंग सीखने वाले व्यक्ति के लिए सबसे आम जरूरतें हैं लाइसेंस पाना, ड्राइविंग स्कूल में पंजीकरण कराना, सड़क से परिचित होना, यातायात नियम संबंधी परीक्षा देना और सड़क की नीति के बारे में जानना । इनमें से ड्राइविंग के बारे में एक बुनियादी बात – सड़क या यातायात चिन्हों बारे में व्यापक जानकारी पाना है, जिसे हमेशा गंभीरता से लेना चाहिए और इन चिन्हों का सड़क पर उतरने से पहले निपुण और व्यापक ज्ञान होना चाहिए ।
कोई भी व्यक्ति चाहे वह यात्री, चालक या पैदल यात्री हो, उसने सड़क के किनारे लगे विभिन्न चिन्हों पर अवश्य ही गौर किया होगा, इनसे महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरा होता है । ये महत्वपूर्ण सड़क निर्देश, रास्तों मार्गदर्शक , चेतावनियों और यातायात नियामक के रूप में हमारी मदद करते हैं । यातायात नियंत्रण के साधन के रूप में चालक द्वारा इन चिन्हों पर पूरा ध्यान देना, उनका सम्मान और उनका पालन करना जरूरी है ।
सड़क संकेतो की मूल भावना एवं उत्पत्ति
सड़क संकेत जो हम अपने आसपास देखते हैं, उनकी उपस्थित इतिहास में काफी पूर्व देखी जा सकती है । आरम्भिक सड़क संकेत मील के पत्थर के रूप में होते थे जो दूरी व दिशा को दर्शाते थे । रोम शासन ने पूरे रोम की दूरी को दर्शाने के लिये अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में पत्थर के खंभ लगाए थे । मध्य युग में चौराहों पर बहु:दिशा संकेत सामान्य हो गये थे, जो शहरों और नगरों की दिशाओं को दर्शाते थे । चूंकि सड़कें सीमाओं व बाधाओं को नहीं देखतीं और सड़क सुरक्षा एक विश्व व्यापक विषय है, इसलिये यह प्रयास किया जाता है कि सड़क संकेतों के लिये समान भाषा का प्रयोग किया जाए । यह माना गया था कि बहुसीमाई अंतरराष्ट्रीय यातायात और सड़क सुरक्षा को सुलभ बनाने के लिये सड़क संकेतों, चिन्हों तथा प्रतीकों की अंतरराष्ट्रीय एकरूपता आवश्यक है । मोटरयुक्त यातायात के आगमन तथा सड़कों पर इनके बढ़ते दबाव के कारण अनेक देशों ने चित्रात्मक संकेतों का प्रयोग आरंभ किया और अपने संकेतों का मानकीकरण कर दिया ताकि अंतरराष्ट्रीय यात्रा को सुगम बनाया जा सके । जहां भाषा का अंतर अवरोध उत्पन्न कर सकता है और सामान्य रूप से इसके फलस्वरूप उपयुक्त सावधानी, विनियमन तथा सूचनात्मक संकेतों के माध्यम से यातायात सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने में भी मदद मिली । इनमें से अधिकतर चित्रात्मक संकेतों में शब्दों के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है और इन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता तथा स्वीकृती प्राप्त है । इन संकेतों की उत्पत्ति प्राथमिक रूप से यूरोप में हुई थी और अधिकतर देशों ने अलग-अलग स्तरों पर इन संकेतों को अपनाया है ।
वर्ष 1947 से यूएनईसीई ने सड़क सुरक्षा को अपना प्रमुख उद्देश्य बना लिया है, विशेष रूप से सड़क यातायात सुरक्षा पर कार्यदल के माध्यम से जिसे डब्लू पी-1 कहते है । यूनईसीई ने वर्ष 1950 में सड़क दुर्घटना निवारण पर कार्य दल-1 (डब्लू पी 1) नामक एक तदर्थ कार्य समूह की स्थापना के साथ राष्ट्र संघ प्रणाली में सड़क सुरक्षा गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाई है । इसके तत्वाधान में अनेक अंतरराष्ट्रीय विधिक दस्तावेज तैयार किए गए है । सामान्य रूप से ये विधिक दस्तावेज और विशिष्ट रूप से ये सम्मेलन यातायात, संकेतों और चिन्हों तथा चालन व्यवहार को यातायात को शासित करने वाले विनियमों के अंतरराष्ट्रीय समन्वय के लिए भी महत्वपूर्ण संदर्भ बिन्दु हैं ।
19 सितम्बर 1949 को यूरोप संघ राष्ट्र आर्थिक आयोग के ध्वज के अधीन जनीवा में सड़क संकेत एवं प्रतीक पर वव्वानधान के अन्तर्गत एक करार पर हस्ताक्षर किए गए थे । यह 20 दिसम्बर 1953 में लागू किया गया था और इसी दिन पंजीकृत भी हुआ था। भारत भी इस करार का एक पक्ष है । संविदाकारी पक्षों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे अपने संबंधित देशों में प्रियोग होने वाले सड़क चिन्हों और संकेतों को यथा संभव अधिकतर स्तर पर विकसित करें व व समरूप बनाएं ।
तत्पश्चात, वियाना में 8 नवम्बर 1968 को सड़क संकेत एवं चिन्हों पर आयोजित सम्मेलन में इस पर संशोधन किए गए थे और सड़क सुरक्षा पर व्यापक रूप से विचार किया गया था । संविदाकारी पक्षों के लिए यह अनिवार्य किया गया कि संकेतों/चिन्हों के प्रयोग में एकरूपता हो । इन विधिक दस्तावेजों के अतिरिक्त, वर्ष 1968 के सम्मेलनों को लागू करने के लिये कार्य दल-1 द्वारा सड़क यातायात पर तथा सड़क संकेतों व चिन्हों पर दो समेकित संकल्प जारी किए गए हैं । इालांकि इन संकल्पों में इन सम्मेलनों के लिऐ प्रभावकारी प्रावधान नहीं हैं, किन्तु ये उन उपायों और विधियों की श्रृंखला का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करते हैं जिन्हें राष्ट्रों द्वारा स्वैच्छिक आधार पर क्रियान्वित किया जाना चाहिए ।
आज, कार्यदल-1 संघ राष्ट्र प्रणाली का एकामात्र स्थायी संस्था है जो सड़क सुरक्षा में सुधार करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है । इसका प्रमुख कार्य यातायात नियमों के सुमेलन के उद़्देश्य से संघ राष्ट्र के विधिक दस्तावेजों के संरक्षक की भूमिका अदा करना है ।
भारत में मोटर वाहन अधिनियम 1988 की अनुसूची-1 में समरूपी सड़क संकेतों को निर्धारित किया गया है, जो वृहत रूप से इन सड़क संकेतों को आकृति और आकारों का वर्णन करता है । इस पुस्तिका तथा मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के कुछ अंतर नजर आ सकते हैं जो कि उपर्युक्त उल्लिखित अंतररराष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुरूप लाने के लिए समीक्षाधीन हैं । इस पुस्तिका में दर्शाए गए संकेत तथा चिन्ह ऊपर उल्लिखित अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुरूप हैं ।
सड़क चिन्हों के लिए अपनाई गई मूल योजना
इस सम्मेलन की रिपोर्ट के अध्याय 2 के अनुच्छेद 5 में सड़क संकेतों की श्रेणियों को परिभाषित किया गया था, जिन्हें मोटे तौर पर निम्नलिखित रूप में श्रेणीबद्ध किया गया था :
अध्याय 2 का अनुच्छेद 6 प्राथमिक रूप से सड़क संकेतों को स्थापित किए जाने की कार्यप्रणाली को परिभाषित करता है । इसमें यह प्रावधान है कि संकेत इस प्रकार स्थापित किए जाने चाहिए ताकि चालक जिसके लिये वे संकेत लगाए गए हैं, वह सुगमता से और समय पर इन्हे पहचान सकें । इसमें संकेतों को स्थापित करने के स्थल और तरीकों का व्यापक रूप से वर्णन किया गया है । सड़क संकेतों को राजमार्गों व सड़कों के साथ में या उनके ऊपर स्थापित किया जाता है । यदि इन संकेतों को स्थापित करने का स्थान किसी दृश्य सहायक विचारधारा से नहीं किया जाता है तो ये संकेत मोटर चालकों के मार्गदर्शन के प्रभावीमाध्यमों के स्थान पर विनाशकारी हो सकते हैं । यातायात संकेत तथा सड़क संकेत वे संकेत हैं जो सड़क के किनारों पर सड़क प्रयोक्ताओं को सूचना प्रदान करने के लिए लगाए जाते हैं । शब्दों के स्थान पर चित्रात्मक संकेतों का प्रयोग किया जाता है और यह सामान्यत: अंतरराष्ट्रीय मानकों का परिणाम है ।
इस पुस्तक में सभी सड़क संकेतों – आदेशात्मक, सावधानीसूचक तथा सूचनात्मक, को संचित किया गया है और प्रत्येक संकेत का संक्षिप्त विवरण उपलब्ध कराया गया है । यह पुस्तक सभी सड़क प्रयोक्ताओं के लिए अत्यंत सहायक होगी, विशेष रूप से युवा वर्ग के लिये जिन्होंने पैदल चलने वालों के रूप में या चालक के रूप में सड़क का प्रयोग करना अभी आरंभ किया है, यह आशा है कि इस समेकित पुस्तक का अध्ययन करने से हमें सड़क पर वाहन चलाते या अन्यथा सड़क का प्रयोग करते समय अधिक जिम्मेदार तथा सड़क हितैषी रूप से व्यवहार करने में मदद मिलेगी ।